Tripur Bhairavi

Tripur Bhairavi

Tripur Bhairavi is a Hindu goddess associated with the Mahavidyas. She is the consort of Kala Bhairava. She is the fifth mahavidya. 

त्रिपुर भैरवी स्वरूप में पंचम महाविद्या के रूप में अवस्थित हैं। त्रिपुर शब्द का अर्थ हैं, तीनों लोक! स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तथा भैरवी शब्द विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हैं। तात्पर्य हैं तीन लोकों में नष्ट या विध्वंस की जो शक्ति हैं, वही भैरवी हैं। देवी पूर्ण विनाश से सम्बंधित हैं तथा भगवान शिव जिनका सम्बन्ध विध्वंस या विनाश से हैं, देवी त्रिपुर भैरवी उन्हीं का एक भिन्न रूप मात्र हैं। देवी भैरवी विनाशकारी प्रकृति के साथ, विनाश से सम्बंधित पूर्ण ज्ञानमयी हैं; विध्वंस काल में अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप सहित, शिव की उपस्थिति के साथ संबंधित हैं। देवी तामसी गुण सम्पन्न हैं, देवी का सम्बन्ध विध्वंसक तत्वों तथा प्रवृति से हैं, देवी! कालरात्रि या काली के रूप समान हैं।
देवी का सम्बन्ध विनाश से होते हुए भी वे सज्जन मानवों हेतु नम्र हैं; दुष्ट प्रवृति युक्त, पापी मानवों हेतु उग्र तथा विनाशकारी शक्ति हैं महाविद्या त्रिपुर-सुंदरी; दुर्जनों, पापियों हेतु देवी की शक्ति ही विनाश कि ओर अग्रसित करती हैं। इस ब्रह्मांड में प्रत्येक तत्व नश्वर हैं तथा विनाश के बिना उत्पत्ति, नव कृति संभव नहीं हैं। केवल मात्र विनाशकारी पहलू ही हानिकर नहीं हैं, रचना! विनाश के बिना संभव नहीं हैं, तथापि विनाश सर्वदा नकारात्मक नहीं होती हैं, सृजन और विनाश, परिचालन लय के अधीन हैं जो ब्रह्मांड के दो आवश्यक पहलू हैं। देवी कि शक्ति ही, जीवित प्राणी को मृत्यु की ओर अग्रसित करती हैं तथा मृत को पञ्च तत्वों में विलीन करने हेतु। भैरवी शब्द तीन अक्षरों से मिल कर बना हैं, प्रथम 'भै या भरणा' जिसका तात्पर्य 'रक्षण' से हैं, द्वितीय 'र या रमणा' रचना तथा 'वी या वमना' मुक्ति से सम्बंधित हैं; प्राकृतिक रूप से देवी घोर विध्वंसक प्रवृति से सम्बंधित हैं।
योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी हैं महाविद्या त्रिपुर-भैरवी; देवी की साधना मुख्यतः घोर कर्मों में होती हैं, देवी ने ही उत्तम मधु पान कर महिषासुर का वध किया था। समस्त भुवन देवी से ही प्रकाशित हैं तथा एक दिन इन्हीं में लय हो जाएंगे, भगवान् नरसिंह की अभिन्न शक्ति हैं देवी त्रिपुर भैरवी। देवी गहरे शारीरिक वर्ण से युक्त एवं त्रिनेत्रा हैं तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। चार भुजाओं से युक्त देवी भैरवी अपने बाएं हाथों से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं और दाहिने हाथों में मानव खप्पर तथा खड्ग धारण करती हैं। देवी रुद्राक्ष तथा सर्पों के आभूषण धारण करती हैं, मानव खप्परों की माला देवी अपने गले में धारण करती हैं।


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